ईश्वर ने मनुष्य के प्रकाशरूपी जीवात्मा को दो अनमोल रत्न प्रदान किये हैं- ख़ुशी एवं असीम शांति । माँ के गर्भ मैं जीवात्मा को इस ज्ञान का बोध होता है किन्तु धीरे-धीरे वो इस रत्नरूपी अचल सचाई से विमुख होकर “मैं” शब्द मैं लीन हो जाता है । जैसे जैसे जीवन की गाडी बाल-अवस्था से

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