ईश्वर ने मनुष्य के प्रकाशरूपी जीवात्मा को दो अनमोल रत्न प्रदान किये हैं- ख़ुशी एवं असीम शांति । माँ के गर्भ मैं जीवात्मा को इस ज्ञान का बोध होता है किन्तु धीरे-धीरे वो इस रत्नरूपी अचल सचाई से विमुख होकर “मैं” शब्द मैं लीन हो जाता है ।

जैसे जैसे जीवन की गाडी बाल-अवस्था से आगे बढ़ती है इस “मैं” शब्द का अहंकार उसकी अंतर्मन की ख़ुशी और शांति को विलीन कर देता है और रह जाता है क्रोध, द्धेष, प्रतिशोध और नफरत ।फिर ऐसा हम क्या करें जिससे हमारे ईश्वरीय खुशी सदा बरकरार रहे ? हम अक्सर यह देखते हैं , हमारी ख़ुशी हमारे अधीन न होकर, दुसरे तथ्यों के अधीन होती है- जैसे हमारे बारे मैं दूसरों के राय एवम भौतिक सुख । जिन तथ्यों पर हम अपनी ख़ुशी को निर्भर रखते हैं वो सदा बदलते रहते हैं फिर उनका क्या मोल? दूसरों की सही राय को अपने व्यक्तित्व के उत्थान के लिए ज़रूर उपयोग करें पर उनके सकारत्मक या नकारत्मक टिपण्णियों पर अपने अंतर्मन की ख़ुशी को निर्भर न करें ।साथ जी साथ भौतिक सुखों का भोग करना कोई बुरी बात नहीं है पर इसपर अपनी ख़ुशी को निर्भर कभी न करें क्यंकि यह आज हैं कल नहीं भी हो सकते हैं ।अपनी अंतर्मन की ख़ुशी को उन तथ्यों पर निर्भर करकर देखिए जो नष्ट नहीं किया जा सकता या जिसमें बदलाव नहीं आता तो आपकी ख़ुशी सदा आपके अधीन होगी ।

अंतर्मन की ख़ुशी – सूर्य की पहली किरण, पुष्पों का खिलना , सावन में पहली फुआर, बच्चो का खिलखिलाना, परमात्मा को याद करना जैसे बातों पर निर्भर करें । उन कार्यों पर निर्भर करें जिससे करने में आपको असीम संतुष्टि होती हो । अगर हम अपनी ख़ुशी का दूरस्थ नियंत्रण दूसरों के हाथ में न देकर या भौतिक सुखों पर न निर्भर रखकर , खुद अपने अधीन रखेंगें तो ये सुख हमसे सदा कोई नहीं छीन सकता ।इस ईश्वरीय वरदान का बोध होने के बाद आपके जीवन में किसी भी तरह का द्धेष, अहंकार, एवम नफरत के लिए तनिक भी स्थान नहीं बचेगा ।

धीरे-धीरे असीम शांति से आप अपना जीवन ज्ञापन कर सकेंगें एवम परमात्मा की प्रदान की हुई इस ज्ञानरूपी प्रकाश से आपका जीवन अचल प्रज्वलित रहेगा । आपके अंतर्मन की ख़ुशी सिर्फ और सिर्फ आपके हाथ में है, इससे अपने जीवन में स्थान दें ।िए !